भदोही से नागेंद्र सिंह द्वारा
भदोही। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले की 78 भदोही संसदीय सीट का अपना अलग राजनीतिक इतिहास रहा है। कभी इस संसदीय सीट से पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने चुनाव लड़कर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तहलका मचा रखा था। इस संसदीय सीट के लिए हुए कुल 19 संसदीय चुनाव में 6 बार कब्जा कांग्रेस का रहा जबकि पांच बार
चुनाव जीतकर भाजपा दूसरी प्रभावी पार्टी बनी है।
78 भदोही लोक सभा संसदीय सीट के लिए देश की आजादी के बाद से कुल 19 बार चुनाव हुए हैं जिसमें
आधा दर्जन बार कांग्रेस प्रत्याशियों को विजयश्री हासिल हुई। कांग्रेस प्रत्याशी जानएन विल्सन ने पहली बार 1952 में इस सीट के लिए चुनाव लड़ा था जहां उन्हें भारी मतों से जीत हासिल हुई थी। उन्होंने 1952 से 62 तक लगातार दो बार इस संसदीय सीट का नेतृत्व किया था। जबकि तीसरी बार 1962 में हुए तीसरे संसदीय चुनाव में कांग्रेस को ही जीत हासिल हुई थी जब पंडित श्यामधर मिश्र ने यहां से चुनाव जीतकर क्षेत्र का नेतृत्व किया था। बताया जाता है कि पंडित श्यामधर मिश्र के नेहरू खानदान से पारिवारिक संबंध रहे हैं। इसलिए उनके कार्यकाल में क्षेत्र में काफी विकास कार्य हुए, यही कारण है कि उन्हें आज भी विकास पुरुष की संज्ञा दी जाती है।
वर्ष 1967 में हुए चौथे संसदीय चुनाव में जनसंघ(वर्तमान की भाजपा)प्रत्याशी वंशनारायण सिंह ने चुनाव जीतकर क्षेत्र का नेतृत्व किया था तो 1971 में वे संसदीय चुनाव में कांग्रेस पार्टी को फिर एक बार नेतृत्व करने का मौका मिला जब जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी अजीज इमाम को भारी मतों से जीत दिलाकर संसद में भेजा था। वर्ष 1977 में हुए संसदीय चुनाव में जनता ने परिवर्तन का मन बनाकर फकीर अली अंसारी को भारतीय लोकदल से चुनाव जीताकर नेतृत्व का मौका दिया। हालांकि 1980 में हुए संसदीय चुनाव में मतदाताओं ने एक बार फिर कांग्रेस को मौका देते हुए अजीज इमाम को दूसरी बार संसद भेजा। वर्ष 1984 में हुए संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने अजीज इमाम की जगह उमाकांत मिश्र को अपना प्रत्याशी बनाया जनता ने उन्हें भी ससम्मान जीत दिलकर संसद भेजने का काम किया। हालांकि कांग्रेस की परंपरागत सीट समझी जाने वाली 78 भदोही संसदीय सीट पर 1989 के बाद हुए कुल 11 संसदीय चुनाव के लिए स्थानीय जनता ने फिर कांग्रेस को मौका नहीं दिया। वर्ष 1989 के संसदीय चुनाव में जनता दल प्रत्याशी यूसुफ बेग को विजयश्री हासिल हुई। 1991 से 96 तक भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त संसदीय क्षेत्र का नेतृत्व करते रहे।
इसके बाद समाजवादी पार्टी ने तुरुप का पत्ता चलते हुए वर्ष 1996 में चंबल के बीहड़ों से निकालकर पूर्व दस्यु सुंदरी फूलनदेवी को चुनावी मैदान में उतारा। वह भी एक दौर था जब फूलनदेवी की एक झलक पाने के लिए बड़े-बुजुर्ग, बच्चे व महिलाएं बेताब हुआ करती थीं, वहीं संसदीय क्षेत्र में देसी व विदेशी मीडिया का जमावड़ा लगा हुआ था। फूलनदेवी के ग्लैमर के सामने भाजपा के वीरेन्द्र सिंह मस्त फीके पड़ गए। 1996 में हुए संसदीय चुनाव में सपा प्रत्याशी फूलन देवी को जनता ने भारी मतों से विजई बनाकर संसदीय सीट के नेतत्व का मौका दिया। हालांकि 1998 में हुए संसदीय चुनाव में भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र ने फूलन देवी को शिकस्त देकर संसदीय सीट पर कब्जा कर लिया।
वर्ष 1999 में हुए 13 वें संसदीय चुनाव में जनता ने दूसरी बार फूलन देवी को जीताकर संसद भेजा लेकिन इस दौरान उनकी हुई निर्मम हत्या के बाद हुए उपचुनाव में सपा को सहानुभूति मिली सपा प्रत्याशी रामरति बिंद वर्ष 2002 में हुए उप चुनाव में निर्वाचित घोषित किए गए।
इसी तरह वर्ष 2004 में हुए संसदीय चुनाव में बसपा प्रत्याशी नरेंद्र कुशवाहा निर्वाचित घोषित किए गए। हालांकि नोट के बदले संसद में प्रश्न का आरोप लगने पर उनके अयोग्य घोषित होने के बाद उप चुनाव हुआ जिस पर बसपा के ही रमेश दुबे निर्वाचित घोषित किए गए। वर्ष 2009 में हुए संसदीय चुनाव मे बसपा ने रमेश दुबे का टिकट काटकर गोरखनाथ पांडे को अपना प्रत्याशी बनाया जो 2009 से 14 तक क्षेत्र का नेतृत्व करते रहे।
वर्ष 2014 में मोदी लहर के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने फिर एक बार वीरेंद्र सिंह मस्त को अपना प्रत्याशी घोषित कर मैदान में उतारा। इस दौरान वीरेंद्र सिंह भारी मतों से निर्वाचित घोषित किए गए वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा ने वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काटकर डॉ रमेश बिंद को अपना प्रत्याशी बनाया हालांकि डॉक्टर बिंद को भी मतदाताओं ने भारी मतों से जीताकर संसद भेजने का
काम किया। पार्टी सूत्रों की मानें तो निर्वाचित घोषित होने के बाद डॉक्टर बिंद स्थानीय जनता की पहुंच से काफी दूर रहे इसलिए पार्टी हाई कमान ने 2024 के संसदीय चुनाव में उनका टिकट काटकर डॉ विनोद कुमार बिंद को अपना प्रत्याशी बनाया है।
फिलहाल 2024 के चुनावी संसदीय संग्राम में भाजपा के डॉक्टर विनोद कुमार बिंद, इण्डी गठबंधन के ललितेश त्रिपाठी तृणमूल कांग्रेस से चुनाव मैदान में हैं, तो वहीं बसपा ने हरिशंकर सिंह उर्फ दादा चौहान को चुनावी मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी विनोद कुमार को भारी भरकम बिंद वोट बैंक के साथ जहां मोदी लहर का सहारा है तो वही इण्डी गठबंधन के ललितेश त्रिपाठी वरिष्ठ कांग्रेसी पंडित कमलापति त्रिपाठी के पौत्र हैं जिनकी पूर्वांचल में कांग्रेस के शासनकाल में अच्छी खासी धौंस रही है। जबकि बसपा प्रत्याशी दादा चौहान कई बार सभासद व पार्टी के मंडल कोऑर्डिनेटर रह चुके हैं। माना जा रहा है कि 2024 के संसदीय चुनाव में मुख्य मुकाबला बसपा भाजपा व इण्डी गठबंधन के बीच ही है। तीनों राजनीतिक पार्टियों के महारथी अपने-अपने तौर तरीकों से मतदाताओं को लुभाने के प्रयास में लगे हैं। हालांकि 25 मई को होने वाले संसदीय चुनाव के बाद मतदाताओं की नजरे 4 जून को आने वाले चुनाव परिणाम पर टिकी हैं।





