सीतामढ़ी स्थित ‘सीताकेश’ वाटिका त्रेतायुग युगीन परम्पराओं का जीवंत उदाहरण
नागेंद्र सिंह की रिपोर्ट
भदोही। सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी परिसर में मौजूद आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत “सीता वाटिका” में केशनुमां उगी विशेष घास त्रेता युगीन परम्पराओं व मान्यताओं का ज्वलंत उदाहरण है। जहां केश को संवार व श्रृंगार कर महिलाएं अभीष्ट कामनाओं की पूर्ति करती हैं।
जनपद मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर काशी- प्रयाग के मध्य अवस्थित सीता समाहित स्थल “सीतामढ़ी” परिसर स्थित अद्भुत घास जगत जननी माता सीता केश के नाम से चिरपरिचित है। जहां सीतामढ़ी पहुंचने वाला हर श्रद्धालु मां सीता के धरती में प्रविष्ट होने के दुर्लभ दृश्य को देखकर भाव विभोर होता है, वहीं दर्शन पूजन करने पहुंची लगभग हर महिला श्रद्धालु मां सीता केश को संवार व श्रृंगार कर इच्छित कामनाओं की पूर्ति करती हैं। मान्यता है की मां सीता केश का श्रृंगार करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
आश्रम के महंत पं.हरि प्रसाद मिश्रा बताते हैं कि है सीता समाहित स्थल मंदिर के प्राकृतिक जलाशय के चारों ओर ‘सीता केश’ वाटिका के रूप में अदभुत घास पाई जाती है। संबंधित वेदों व पुराणों में वर्णित प्रसंगों का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि माता सीता के भू-प्रवेश के दौरान श्रीराम ने उनके केश पकड़ कर रोकने का प्रयास किया था। जिससे कुछ बाल उखड़ गए थे जो आज केश के बाल के रूप में आस-पास वाटिका के रूप में उगे हुए हैं। जिसे आज “सीता केश वाटिका” के रूप में जाना जाता है। ऐसी दुलर्भ व मुलायम घास अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। आस्थावान कहते हैं कि माता ‘सीता केश एवं ‘सीता वट’ का दर्शन पूजन एवं श्रृंगार करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है
वैसे तो सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी में हर वर्ष लाखों की तादात में सैलानी अंतर प्रांतीय जनपदों से पहुंचते हैं। विशेष कर शारदीय एवं वासंतिक नवरात्र में इस धार्मिक स्थल पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से चलकर सीतामढ़ी पहुंची सावित्री देवी ने बताया कि वह हर वर्ष दोनों नवरात्र में इस धार्मिक स्थल पर हाजिरी जरूर लगाती हैं। जब से इस धार्मिक स्थल की परिक्रमा शुरू की है जगत जननी माता सीता की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति के साथ धन-धान्य से ओतप्रोत हैं।





