बघेल छावनी स्थित सूर्य प्रतिमा की उम्र आज भी पुरातत्ववेत्ताओं के लिए बनी पहेली
नागेंद्र सिंह की रिपोर्ट
भदोही। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले की बघेल छावनी स्थित कोणार्क कालीन सूर्य मंदिर में स्थापित भगवान सूर्य की हजारों साल पुरानी दुर्लभ प्रतिमा की उम्र आज भी अबूझ पहेली बनी हुई है।
भदोही के हरिगांव में स्थित बघेल छावनी समृद्ध इतिहास को खुद अपने अंदर समेटे हुए है। इस मंदिर में विशाल पीपल के वृक्ष का भी अपना एक अलग इतिहास है। बघेल परिवार से जुड़े आशीष सिंह ने बताया कि पहले पीपल के वृक्ष के पास ही सूर्य देवता का प्राचीन मंदिर बना हुआ था। लगातार विशाल स्वरूप धारण कर रहे पीपल के वृक्ष के कारण मंदिर टूटने लगा है। जीर्ण-शीर्ण हो चुके सूर्य मंदिर का पुन: निर्माण उनके चाचा अजीत कुमार सिंह ने 1993 में कराया था। जिसका नाम सिद्ध पीठ शिवायतन व सूर्य मंदिर रखा गया। आशीष के चाचा ने ही मंदिर में पंचायतन मूर्तियों की स्थापना करवाई। जिसमें भगवान शिव, विष्णु, मां दुर्गा, श्री गणेश और प्राचीन सूर्य देवता की प्रतिमा शामिल है। बताया कि वैदिक शास्त्रों के अनुसार यह पंचदेव ही प्रमुख हैं। शेष देवता इनके अंगीय हैं। विशेष बात तो यह है कि मंदिर जिस चबूतरे पर बनाया गया है उसकी परिक्रमा ओमकार है। जिसकी परिक्रमा करने पर ओम का आकार बनता है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की टीम बघेल छावनी पहुंची और मूर्ति की जांच पड़ताल की। जांच के बाद अधिकारियों ने बताया की मूर्ति कोणार्क कालीन हो सकती है। जिसको लेकर पुरातत्व विभाग के अधिकारी भी आश्वस्त नहीं दिखाई पड़ते। प्राचीन सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की जो प्रतिमा है, उसे जूता पहनाया गया है। कोणार्क काल में ही मूर्तियों को जूता पहनाया जाता था। पुरातत्व विभाग के अधिकारी इसे दुर्लभ मूर्ति बताते हुए अपने साथ ले जाने के लिए आग्रह करने लगे, लेकिन बघेल राजवंश परिवार के आराध्य व कुल देव बताकर प्रतिमा देने से इन्कार कर दिया गया। भगवान सूर्य की दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन-पूजन के लिए आज भी श्रद्धालु दूरदराज से पहुंचते हैं





