अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ क्राइसिस का असर अब कालीन उद्योग पर दिखाई पड़ने लगा है। भारतीय कालीनों के प्रमुख आयातक देश यूएस से कारोबार प्रभावित होने से अबतक लगभग 85% ऑर्डर होल्ड पर होने की स्थिति में परिक्षेत्र में रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है।
कालीन निर्यातक परवेज अहमद अंसारी ने बताया कि विदेशी बाजार में होने वाले भारतीय कालीनों के निर्यात का 60 फीसद से अधिक अकेले अमेरिका को होता है। टैरिफ क्राइसिस के कारण ₹9,600 करोड़ मूल्य का निर्यात प्रभावित हुआ हैं। जो भारत के कुल ₹16,000 करोड़ कार्पेट निर्यात का लगभग 60% हिस्सा है ।
उद्योग प्रभावित होने से कालीन परिक्षेत्र भदोही में बुनकरों, कारीगरों और ग्रामीण मजदूरों सहित लगभग 13 लाख लोगों की आजीविका खतरे में है ।
एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 70% ऑर्डर रद्द हो गए या स्थगित कर दिए गए हैं, जिससे उत्पादन लगभग रुक सा गया है। उत्पादन ठप होने से कई इलाकों में 50% तक मजदूरों को घर भेजा गया है। जिससे हालात ऐसे बन रहे कि तमाम कालीन कारखानों में ताला लटकने की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव(जीटीआरआई ) की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे कार्पेट्स पर अब 2.9% के बजाय 52.9% तक टैरिफ लागू हो गया है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता खत्म हो गई है, और 70% तक निर्यात गिर सकता है, जिससे अमेरिकी बाजार में निर्यात लगभग बंद ही माना जा सकता है। यूएस द्वारा 50% टैरिफ लगाने से भारतीय कार्पेट उद्योग पर गहरा असर पड़ा है। 85% तक निर्यात ऑर्डर रुके हुए हैं। जिनमें ज्यादातर आर्डर अमेरिका के लिए थे। कालीन निर्यातकों का मानना है कि टैरिफ क्राइसिस से निपटने के लिए समय रहते सरकार ने विशेष राहत पैकेज जारी नहीं किया तो लाखों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हो सकता है







